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डर फिर काहे का
कुर्सी चढ़ा दहाड़े भरता
गधा पचीसी सुना रहा है
ऊँची तानेंा तानों में गूँगों का दरबार लगाये लगाए
घर दालानों में
चौखट पर स्वर रहा सुनायीसुनाई
फटे नगाड़े का
मीठे बोल अधर पर अंदर
तीखा जहर ज़हर भरे देख -देख कर लँगड़ी चालें
सारा शहर डरे
उल्टा -सीधा पढ़ा रहा है
पाठ पहाड़े का
मोटी खाल,सलाखें सलाख़ें छोटी
डर फिर काहे का
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