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क्या कहीं फिर कोई बस्ती उजड़ी
लोग क्यूँ जश्न मनाने आये
 
आ ना जाए कहीं फिर लौट के जाँ
मेरी मय्यत वो सझाने आये
सो रहो मौत के पहलू में "फ़राज़"
नींद किस वक़्त न जाने आये
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