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|रचनाकार=कृष्ण कुमार यादव
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<poem>
घर का दरवाजा दरवाज़ा खोलता हूँ
नीचे एक पत्र पड़ा है
शायद डाकिया अंदर डाल गया है
रात को सपने में देखता हूँ
माँ मेरे सिरहाने बैठी
बालों में उंगलियाँ फिरा रही है।है ।
</poem>
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