भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गोरख बाणी / गोरखनाथ

602 bytes removed, 16:22, 6 मई 2011
{{KKCatKavita}}
<poem>
 मरो वे जोगी मरो, मरो मरण है मीठातिस मरणी मरो जिस मरणी गोरख मरि दीठा  हबकि न बोलिबा, ठबकि न चलिबा, धीरे धरीबा पाँवगरब न करिबा, सहजै रहिबा, भणत गौरष रावं  गोरक्ष कहे सुण हरे अवधू , जग में ऐसै रहणां आंषे देषिबा, कानै सुणिबा, मुष थै कछु न कहणा  आसन दृढ़, आहार दृढ़, जो निद्रा दृढ़ होय नाथ कहें सुन बालका, मरे ना बूढ़ा होय बोले अमृत बाणी वरिषेगी कंबली भीजैगा पाणी । शिव गोरक्ष यह मंत्र हैगाडी पडरवा बांधिले शूंटा, सर्व सुखों का सार चले दमामा बाजिलै ऊंटा । जपो बैठ एकान्त में, तन कऊवा की सुधी बिसार शिव गोरक्ष शुभनाम मेंडाली पीपल बासे, शक्ति भरी आगाध नमूसा कै सबद बिलइया नासे । लेने से हैं तर गयेचलै बटावा थाकी बाट, नीच कोटि के व्याध सोवै डूकरिया ठोरे षाट । अजपा जपे शून्य मर धरेढूकिले कूकर भूकिले चोर, पांचो इंद्रिय निग्रह करे काढै धणी पुकारे ढोर । ब्रहम् अग्नि में होमे कायाउजड़ षेडा नगर मझारी, तासू महादेव बन्दे पाया तलि गागर ऊपर पनिहारी ।  मन मूरख समझे नहींमगरी परि चूल्हा धून्धाई, योगमार्ग की बात पोवणहारा कों रोटी खाई । अति चंचल भटकत फिरेकामिनि जलै अंगीठी तापै, करे बहुत उत्पातविच बैसंदर थरहर काँपे । मन मन्दिर में वास हैएक जु रढीया रढ़ती आई, पाप पुण्य का ज्ञान बहू बिवाई सासू जाई । पुण्य रुप मन शुद्ध हैनगरी को पाणी कूई आवै, पाप अशुद्ध महान उलटी चरचा गोरष गावै ।।
<poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,667
edits