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{{KKRachna
|रचनाकार=हरे प्रकाश उपाध्याय
|संग्रह=खिलाड़ी दोस्त और अन्य कविताएँ / हरे प्रकाश उपाध्याय}}{{KKCatKavita}}<poem> '''डरना मत भाई'''
आ रहे हैं मेहमान
लीपना होगा घर-आँगन
सिर्फ़ बुहार दे आवारा पत्ते
हटा दे महकती मिट्टी और सड़ते खर
इतने से ख़त्म नहीं हो पाएगी बदबू
कैसे छुपाएँगे उन्हें
अस्त-व्यस्त चीज़ों को सहेजकर
रास्ते में जो झाड़-झंखाड हैं
जंगल और पहाड़ हैं
डरना नहीं भाई
सुनाई दे सकती है उरनकी फु़ँफकार
ऐसे में सीधे नहीं, उनके मुँह पर फेंकना कपड़ा
और तब उठाना लाठी
सीधे लड़ने के दिन गयेगए
स्मृतियाँ ओर घर की सारी चीज़े जगह पर
</poem>