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| रचनाकार=रफीक सादानी
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<poem>
औरन के कहे मा हम आयेन
काया का अपने तरसायेन
कालिज मा भेजि के भरि पायेन
तू पढ़ै से अच्छा घरे रहौ,
चाहे खटिया पै परे रहौ।
हम सोचा रहा लिखि पढ़ि जइहौ
आकास मा एक दिन चढ़ि जइहौ
पुरखन से आगे बढ़ि जइहौ
अब घर कै खेती चरे रहौ,
... चाहे खटिया पै परे रहौ।
जबसे तू इस्कूल गयौ
तू फर्ज का अपने भूलि गयौ
तुम क्वारै भैया झूलि गयौ
भट्ठी मा हबिस के बरे रहौ,
... चाहे खटिया पै परे रहौ।
तुमसे अच्छा रघुआ हरजन
डिगरी पाइस आधा दर्जन
अस्पताल मा होइगा सर्जन
तू ऊ ..............करे रहौ,
... चाहे खटिया पै परे रहौ।
हम सोचा रहा अफसर बनिहौ
या देसभक्त लीडर बनिहौ
का पता रहा लोफर बनिहौ
अब जेब मा कट्टा धरे रहौ
... चाहे खटिया पै परे रहौ।
फैसन अस तुमपै छाइ गवा
यक राही धोखा खाइ गवा
हिजड़े का पसीना आइ गवा
जीते जी भैया मरे रहौ,
... चाहे खटिया पै परे रहौ।
हर बुरे काम पै अमल किहेउ
कुछ पढ़ेउ न खाली नकल किहेउ
बर्बाद भविस कै फसल किहेउ
अब बाप कै सब सुख हरे रहौ,
... चाहे खटिया पै परे रहौ।
हम पुन्न किहा तू पाप किहेउ
हम भजन तू फिल्मी जाप किहेउ
गुंडई मा कालिज टाप किहेउ
जो मन मा आवै करे रहौ,
... चाहे खटिया पै परे रहौ।
अइसन जौ बिगाड़े ढंग रहिहौ
बेहूदन के जौ संग रहिहौ
जेस रफीक हैं वैसन तंग रहिहौ
पूलिस के नजर से टरे रहौ,
... चाहे खटिया पै परे रहौ।
</poem>