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साहित्यिक वातावरण में पला बढ़ा और आरंभ में राजस्थानी में ही लिखना स्वीकारा किया, लेखन में भाषा नहीं वरन लेखन ही महत्वपूर्ण होता है । एम. ए. हिंदी और राजस्थानी साहित्य में करने के पश्चात “निर्मल वर्मा के कथा साहित्य में आधुनिकता बोध” विषय पर शोध कार्य किया ।
साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली के लिए “ग-गीत” (काव्य संग्रह कवि मोहन आलोक) का राजस्थानी से हिंदी अनुवाद किया जो अकादेमी द्वारा 2004 में छपा ।
राजस्थानी में मौलिक कविता संग्रह के रूप में ‘साख’ तथा ‘देसूंटो’ कविता-संग्रह , 'आलोचना रै आंगणै’ तथा लघुकथा संग्रह - ’भोर सूं आथण तांईं’ प्रकाशित हुए हैं ।
निर्मल वर्मा के कथा संग्रह "कव्वै और काला पानी" और अमृता प्रीतम के कविता संग्रह "कागद ते कनवास" के राजस्थानी अनुवाद भी किए, जो महत्त्वपूर्ण माने गए हैं ।
अनेक सग्रहों में सहभागी रचनाकार के रूप में प्रकाशित और राजस्थानी भाषा, साहित्य और संस्कृति अकादमी, बीकानेर की मासिक पत्रिका ‘जागती जोत’ का संपादन भी किया ।