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Kavita Kosh से
प्यार में दिल कभी हारा भी है, हारा भी नहीं
चूमते सिर को गये सैकडों सैकड़ों आँधी-तूफ़ान
उनको जीवन की तबाही में पुकारा भी नहीं
हाथ में आपके आँचल का किनारा भी नहीं
यों तो इस बाग़ में हर डाल पे खिलते हैं गुलाब
मुस्कुराने का मगर हमको इशारा भी नहीं!
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