भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
खड़े हुए थे अँधेरे तो दोनों ओर मगर
जहां था प्यार नज़रबंद आँसुओं से कभी
उसी चहारदीवारी में सौ गुलाब खिले
जतन से ओढ़ के चादर तो ज्यों-की-त्यों रख धर दी
मगर कहीं थे किनारी में सौ गुलाब खिले
<poem>