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Kavita Kosh से
हमारे प्यार का भी ज़ोर आजमाते चलो
कुछ इस बहाने ही आयी तो रौशनी रोशनी घर में गले लगाके लगा के बिजलियों को मुस्कुराते चलो
कहाँ से लौ उतर आई है इसको मत पूछो
तुम्हें तो बस की कि दिए से दिया जलाते चलो
कहीं पड़ाव से पहले ही नींद घेर न ले