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Kavita Kosh से
हमें तो कहते हो,'अपना ख़याल है कि नहीं?'
कभी तो पास चले आओ कि देखें हम भी
तुम्हें भी याद वो फूलों की डाल है कि नहीं?
जो सोचिये तो उलझता है जाल, 'है कि नहीं'
चुभे हैं तन में तो काँटे हज़ार-लाख, मगर
गुलाब लाल है अब तक, कमाल क़माल है कि नहीं
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