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बाद में आँखों को कष्ट न देने के लिए कुछ लोगों ने मोती ख़रीदे
और उण्हें उन्हें महँगे और स्थायी आँसुओं की तरह पेश करने लगे. इस
तरह आँसुओं में विभाजन शुरू हुआ. असली आँसू धीरे-धीरे पृष्ठभूमि
में चले गये. दूसरी तरफ़ मोतियों का कारोबार कअऊब ख़ूब फैल चुका है.
उनकी आँखों से बहुत देर बाद बमुश्किल आँसूनुमा एक चीज़ निकलती
है और उन्हीं के सहरीर शरीर में गुम हो जाती है.
(रचनाकाल : 1989)
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