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Kavita Kosh से
नज़र भले ही हमें देख के शरमा ही गयी
झलक तो प्यार की पलकों से छन के छनके आ ही गयी
क़सूर कुछ तेरे हाथों का भी तो है ,फनकार!
हरेक मुकाम पे पहले ये बेवफ़ा ही गयी
पहुँच के नाव किनारे पे डगमगा ही गयी
गली में उनके उनकी हज़ारों महक उठे हैं गुलाब
हमारे दिल की तबाही भी रंग ला ही गयी
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