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Kavita Kosh से
कोई छेड़े हमें किसलिए!
हम तो मरने की धुन में जिएजिये
पाँव धीरे से रखना हवा
फूल सोये हैं करवट लिएलिये
सूरतें एक से एक थीं
और भी लाल होंगे गुलाब
उसने होठों से हैं छू लिए दिये
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