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Kavita Kosh से
यों तो बदली हुई राहों की भी मजबूरी थी
कुछ मगर फूल सी बांहों बाँहों की भी मजबूरी थी
कुछ तो मजबूर किया उनकी अदाओं ने हमें
प्यार की दी है सज़ा हमको मगर यह तो बता,
क्या न इन शोख शोख़ गुनाहों की भी मजबूरी थी?
यों तो इस बाग़ में हँसने केलिए आये गुलाब
दिल से उठती हुई आहों की भी मजबूरी थी
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