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|रचनाकार=द्विज
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|पीछे=बन, गिरि-उपबन जाइ, कबहुँ बहु-भाँतिन खेलहिं / शृंगार-लतिका / द्विज
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|सारणी=शृंगार-लतिका / द्विज/ पृष्ठ 4
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<poem>
'''रोला'''
''(फाग और वंशी ध्वनि द्वारा स्तब्धता का संक्षिप्त वर्णन)''

कबहुँक फागुन माँहि, दोऊ फगुवा मिलि खेलहिं ।
लखिओ मदमाँते-स्याम, कबहुँ सखियाँ हँसि हेलहिं ॥
ह्वै नबोढ कहुँ मुग्ध-तिया, मोहन-मन-रोहैं ।
हरि-मुख सुनि कहुँ बैनु, सबै-बिधि राधा मोहैं ॥४१॥
</poem>
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