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<poem>
'''सोरठा'''
''(कवि उक्ति)''

तब तजि संभ्रम-बास, मति कौ यह उपदेस सुनि ।
चाँह्यौ करन प्रकास, रचि राधा-माधव-सुजस ॥५१॥
</poem>
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