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|रचनाकार=द्विज
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|आगे=लखि-लखि कुमति कुदूषनहिं / शृंगार-लतिका / द्विज
|सारणी=शृंगार-लतिका / द्विज/ पृष्ठ 6
}}
<poem>
'''किरीट सवैया'''
''(कवि संतोश-वर्णन)''
आई न जो बक-बावरे पैं, द्विजदेव’ जू हंसन की तौ गई गति ।
मैंढुक-मीन न मान करयौ तौ, भई है कहा अरबिंदन की छति ॥
उक्ति-उदार कबिंदन पैं, बन-बासिन की सुभई न भई रति ।
जो पैं गँवारन लीन्हैं न तौ, घटि जाती जबाहिर की कहूँ कीमति ॥६१॥
</poem>
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<poem>
'''किरीट सवैया'''
''(कवि संतोश-वर्णन)''
आई न जो बक-बावरे पैं, द्विजदेव’ जू हंसन की तौ गई गति ।
मैंढुक-मीन न मान करयौ तौ, भई है कहा अरबिंदन की छति ॥
उक्ति-उदार कबिंदन पैं, बन-बासिन की सुभई न भई रति ।
जो पैं गँवारन लीन्हैं न तौ, घटि जाती जबाहिर की कहूँ कीमति ॥६१॥
</poem>