भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
अपरिचित शब्दों की
एक अनाम दुनिया
जहां नागपफनी नागफ़नी के कांटेदार जंगल में
कभी-कभी रसवंती के बेर उग आते हैं
कभी बेर को पाने की हवस में
गजरों से भी चोट लगती है
चोट की मुस्कुराहट का
पेशानी पर मकड़जाल नहीं
लटों की लंपटता जारी थी