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Kavita Kosh से
कहते हो, 'हमें क्यों न बुलाते हो,'--ये क्या है!
जबतक सजा के खुद सजाके ख़ुद को हम आते हैं मंच पर
परदा ही सामने का गिराते हो, ये क्या है!
दिन-रात याद करने का अहसान एहसान तो गया
इल्ज़ाम भूलने का लगाते हो, ये क्या है!