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Kavita Kosh से
कोई ऊँची अटारी पे बैठा रहा, हाय! हमने उसे क्यों पुकारा नहीं!
झुकके आँचल में उसने जिसने समेटा हमें, ज्यों ही तूफ़ान ने सर उभारा नहीं
उनसे उम्मीद क्या, बाद मरने के वे, दो क़दम आके काँधा भी देंगे कभी