भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
यों तो ख़ुशी के दौर भी होते है कम नहीं
ऐसा है कौन, दिल में मगर जिसके गम ग़म नहीं!
हम हैं कि जी रहे हैं हरेक झूठ को सच मान
बेबस हो तू भले ही मगर बेरहम नहीं
यह साज़ बेसुरा भी ग़नीमत है दोस्तोंदोस्तो!
कल लाख पुकारे कोई, बोलेंगे हम नहीं