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Kavita Kosh से
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मुक्तक
अब आदमी का इक नया प्रकार हो गया , आदमी का आदमी शिकार हो गया , जरुरत नहीं आखेट को अब कानन गमन की ,
शहर में ही गोश्त का बाजार हो गया |