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Kavita Kosh से
शुक्र है, आप न लाये कभी प्याला मुझ तक
मेरी आदत है बुरी, पी के पीके बहक जाने की
दिल में एक हूक-सी उठती है आइने को देख
क्या से क्या हो गए गर्दिश में से हम ज़माने की
देखते-देखते आँखें चुरा गयी है बहार