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Kavita Kosh से
तपिश सीने की बस आँखों में लानी याद आती है
'कहा क्या! कल कहूंगा कहूँगा क्या! न यह कहता तो क्या कहता!'
यही सब सोचते रातें बितानी याद आती है
लटें आवारा उस रुख़ से हटानी, याद आती है
कभी गाने को कहते ही, लजा कर लजाकर सर झुका लेना
गुलाब! अब भी किसीकी आनाकानी याद आती है
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