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करूँ भविष्यत् की चिंता क्यों जो अजान, अश्रुत है!
मुझको एक चरण अगला ही दीखता दिखता रहे, बहुत है
आज दिये की लौ-सा वह मुझको दिखलाई पड़ता
वर्ण-भेद का कंटक यह जो पाँवों में है गड़ता
केवल पय से बच पाता मानव-शिशु विश्व-समर में!
यही प्रेम की महाशक्ति लेकर मैं आज बढूँगा
छोडूंगा छोड़ूँगा न इसे ईसा-सा सूली भले चढूँगा
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जिनपर मेरा सतत नियंत्रण रहें विमल वे साधन
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