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कर दिया सकुशल उन्होंने मुक्त राहु-समूह में से
इंदु मानव-चेतना का;
ज्यों कभी वासुदेव वसुदेव ने था कंस-कारागार से
घन-सघन भादों की निशा में
उमड़ती दुर्दांत यमुना-पार भेजा
सामने के पेड़ पर फाँसी चढ़ा दें'
तब चतुर रक्षाधिकारी ने कहा बाहर निकलकर
'बंधुओंबंधुओ! गाँधी कहाँ है इस भवन में!
वह लगा कर पंख नभ में उड़ गया है
घुल गया है वायु में