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सूना जीवन, लक्ष्य-दिशा है धूमिल तुमको खोकर
एक मधुर सपने से मानों जाग रहा हूँ सोकर
कुछ दिन तक फूला फिरता था हृदय किसीका होकर
धरती पर गिरना था यों वह, खा उसकी ही ठोकर

साँसों में भर साँस, आँख में आँखें डाल, उलझती
दूर गयी तुम, स्मृति अंतर में पग-ध्वनि बनकर बजती
कितनी शेष प्रणय क्रीड़ायें विरह-वेदना सजती!
हाय! विफलता-सी सब पर यह तम की लहर गरजती

उड़ आँधी के साथ गगन के तारों में छिप जाऊँ
लहरों में बहता सागर में मन की जलन बुझाऊँ!
घायल पंछी सदृश दिशाओं से टकरा फिर आऊँ!
मेरे दृग की ज्योति! कहाँ अब कैसे तुमको पाऊँ!"

धीरे-धीरे भीग रही थी रजनी तारोंवाली
दूर नगर पर नीरवता ने अपनी चादर डाली
तम-मय तट के ग्राम, सड़क ज्यों सोयी साँपिन काली
मौन खड़े प्रहरी-से वट-तरु करते थे रखवाली

उड़ती गृह-सौधों से आतीं वीणा की झंकारें
नभ के नयनों से आँसू-से चू पड़ते थे तारे
चक्रवाक युग से बिछुड़े तट, श्यामल बाँह पसारे
सुनते थे व्याकुल विरही की करुणा भरी पुकारें
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