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Kavita Kosh से
हम पड़े सिसकते बिंदु-बिंदु
आकांक्षाओं का स्वर्ण-इंदु
इस जलते जीवन का प्रमाद
मैं किसे सौंप दूँ, प्राणों की, यह गहन विकलता, यह विषाद?
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