भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
तूने अच्छे खेल खिलाये!
खेल तुझे हो, हमने तो इसमें दुःखदुख-ही-दुःख दुख पाये
जब भी हमने राग मिलाया
जुड़ा मंडली, सुर में गाया
क्रूर काल ने पहन फण फैलाया
सारे ठाठ उड़ाए
तूने अच्छे खेल खिलाये!
खेल तुझे हो, हमने तो इसमें दुःखदुख-ही-दुःख दुख पाये
<poem>