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[[Category:गीत]]
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एक दिन वासंती संध्या में
खड़े सिन्धु-तट पर थे जब हम, हाथ हाथ में थामे
भाव यही मन का मैं?
तभी पलट कर पलटकर ज्वार बह गया
पल में रज का महल ढह गया
प्रश्न वहीं -का -वहीं रह गया
उड़ता हुआ हवा में