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Kavita Kosh से
नहीं है नया हमारा प्यार
पहले ही से ही बसी हुई थी तारों में झंकार
जड़ पाषाण-खंड के भीतर
प्राणों के अविदित परिचय में
घुमड़ रहा था प्रेम हृदय में
मैंने बस बांधा बाँधा सुर-लय में
नयन हुए जब चार