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Kavita Kosh से
फूलों से प्यार कर सकूँ, मेरे पास इतना समय कहाँ है!
मेरे सिर पर पहाड़ों का बोझ है,
अगणित झाडझाड़-झंखाड़ों का बोझ है,
सुगंध को स्वीकार कर सकूँ, मेरे पास इतना समय कहाँ है!
माना यह हवा बहुत सुहानी है,