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|रचनाकार=अशोक कुमार शुक्ला
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यह कैसा घर ?
जहॉ बिस्तर पर उगी है नागफनी
आंगन में घूमते हैं संपोले
सोफे पर बिखरी हैं चींटियॉ,
खूंटी पर टंगे हैं रिश्ते
,बालकनी में लटका है भरोसा,
बाथरूम की नाली में बह गयी हैं परंपरायें
हवा में फैला है जहरीला धुंवा
दीमकों ने चाट लिये हैं
सुरक्षा के तने,
संस्कारो को निगलता टेलीविजन,
और पूजाघर में
कुछ इस तरह बंसी बजाते श्री कृश्ण
जैसे रोम के जलने पर
बंसी बजाता रहा था
वहॅा का शासक नीरो
सचमुच कैसा है यह घर ?

</poem>
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