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नहीं दिखाई देती दीखती अब गौरैयाआज हमारे गाँव-गली-घर या शहरों में
छत-मुँडेर पर, गाँव-खेत में
चिड़ीमार ने जाल बिछाए
पकड़-पकड़ कर , पिंजड़ों में धर
चिड़ियाघर में उसको लाए
टूटे पर अपने सहलाए
दम घुटता है साँसें दुखतीं
गोते खाती रहती है छिन-पलछिनअंदर-बाहर की लहरों में
दाना भी है, पानी भी है
बात सभी ने जानी भी है
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