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तुम न आए / अवनीश सिंह चौहान

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मन पराग-केसर कुम्हलाए
तुम न आए
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|रचनाकार=अवनीश सिंह चौहान
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<Poem>
सुरभित सुमन, गूँज भँवरे की
मन में कितने फूल बिछाए
आम्र लताएँ, पिक की कुँजन
मन में मेरे मोर नचाए

रूप-कूक का मौसम जाए
तुम न आए

नीला व्योम, बोल चातक के
मन में मेरे आग लगाए
स्वाति-नक्षत्र सत्र प्राणों का
मन में मेरे राग जगाए

कबसे बैठे पलक बिछाए
तुम न आए

गूंगे दिन, कालिख रातों का
मन में मेरे रंज बढ़ाए
रिश्ता भूल गए बाती का
मन ने मेरे प्रश्न उठाए

नेह-छोह में पलक भिगाए
तुम न आए
</poem>
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