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Kavita Kosh से
हवा के झोंके में
झरते रहें फलर फल
उठाते-खाते गुजरते रहें राहगीर
ऐसा एकर कर पेड़
बस्ती के हर आँगन में
लगाना ही होगा
लोग
भूल गए हैं – धर्म
पेड़ों को बतानान बताना ही होगा।
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