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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अवनीश सिंह चौहान |संग्रह= }} <poem> पल-पल शीशा हाथ में …
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अवनीश सिंह चौहान
|संग्रह=
}}
<poem>
पल-पल शीशा
हाथ में कंघी
काढ़े अपने बाल
बोलो साधो
ऐसे कैसे
बदला अपना लाल!
कब जगना
कब उसका सोना
पकड़ बैठता
छत का कोना
संकेतों में
पूछा करता
जाने किसका हाल!
कभी भाँग-सी
खाए रहता
कुछ पूछो तो
कुछ है कहता
सीधी-सादी
पगडंडी पर
डगमग उसकी चाल!
तकली में अब
लगी रुई है
चलती जाती
समय सुई है
एक लड़ी भी
बनी सही ना
बीत गया है साल!
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=अवनीश सिंह चौहान
|संग्रह=
}}
<poem>
पल-पल शीशा
हाथ में कंघी
काढ़े अपने बाल
बोलो साधो
ऐसे कैसे
बदला अपना लाल!
कब जगना
कब उसका सोना
पकड़ बैठता
छत का कोना
संकेतों में
पूछा करता
जाने किसका हाल!
कभी भाँग-सी
खाए रहता
कुछ पूछो तो
कुछ है कहता
सीधी-सादी
पगडंडी पर
डगमग उसकी चाल!
तकली में अब
लगी रुई है
चलती जाती
समय सुई है
एक लड़ी भी
बनी सही ना
बीत गया है साल!
</poem>