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{{KKParichay|चित्र=|नाम=रवि प्रकाश|उपनाम= |जन्म=|मृत्यु=|जन्मस्थान=भारत|कृतियाँ= |विविध=
|अंग्रेज़ीनाम=Ravi Prakash, Ravi Prakaash
|जीवनी=[[रवि प्रकाश / परिचय]]
 
तुम पास बैठकर
 
कविता की कोई ऐसी पंक्ति गाओ
 
जहाँ मेरे कवि की आत्मा
 
निर्वस्त्र होकर
 
मेरे आँख का पानी मांग रही है
 
ये कैसा समय है
 
कि, ये पूरी सुबह
 
किसी बंजारे के गीत की तरह
 
धीरे-धीरे मेरी आत्मा को चीर रही है
 
जिसके रक्त से लाल हो जाता है आसमान
 
जिसके स्वाद से जवान होता है
 
हमारे समय का सूरज
 
और चमकता है माथे पर
 
जहाँ से टपकी पसीने की एक बूंद
 
जाती है मेरे नाभी तक
 
और विषाक्त कर देती है
 
मेरी समस्त कुंडलनियों को
 
मैं धीरे-धीरे छूटने लगता हूँ
 
ऐसे, कि जैसे
 
सूर्य के हाथ से छूट रही है पृथ्वी
 
सागर के एक कोने में
 
शाम होने को है
 
मैं रूठकर कितना भटकूंगा
 शब्दों में
<poem>
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