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|रचनाकार=गोपाल कृष्‍ण भट्ट 'आकुल'
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'''(इस रचना में प्रत्‍येक पंक्‍ति‍ के पहले अक्षर से मि‍ल कर बनता है
पन्‍द्रह अगस्‍त दो हजार ग्‍यारह, भारत मेरा महान्)'''

परि‍वर्तन की एक नई आधारशि‍ला रखना है।
न्‍याय मि‍ले बस इसीलि‍ए आकाश हि‍ला रखना है।
द्रवि‍त हृदय में मधुमय इक गु़लजार खि‍ला रखना है।
हर दम संकट संघर्षों में हाथ मि‍ला रखना है।

अमर शहीदों की शहादत का इंडि‍या गेट गवाह है।
ग़दर वीर जब बि‍फरे अंग्रेजों का हश्र गवाह है।
स्‍वाह हुए कुल के कुल अक्षोहि‍णी कुरुक्षेत्र गवाह है।
तब से जो भी हुआ आज तक सब इति‍हास गवाह है।

दो लफ्जों में उत्तर ढूँढ़े हो स्वैतंत्र क्या पाया?
हर कूचे और गली गली में क्यूँत सन्नाँट छाया?
जात पाँत का भेद मि‍टा क्या राम राज्य है आया?
रख कर मुँह को बंद जी रहे क्योंा आतंकी साया ?

ग्लोबल वार्मिंग,भ्रष्टाचार,महँगई,प्रदूषण,आबादी।
याद रखेगा हर प्राणी अब जल थल नभ की बरबादी।
रहे न हम गर जागरूक पछतायेंगे जी आजादी।
हर हाल न मानव मूल्य सहेज सके तो कैसी आज़ादी?

भाग्य वि‍धाता,सत्यमेव जयते,जन गण मन गाते।
स्म रि‍वाज़ नि‍भाते और हर उत्सव पर्व मनाते।
तब से भारत माता की जय कह कर जोश बढ़ाते।

मेरा भारत है महान् नहीं कहते कभी अघाते।
राम रहीम कबीर सूर की वाणी को दोहराते।

महका दो अपनी धरती फि‍र हरि‍त क्रांति‍ करना है ।
हार नहीं हर हाल प्रकृति‍ को अब सहेज रखना है ।
न्याय मि‍ले बस इसीलि‍ए आकाश हि‍ला रखना है।

परि‍वर्तन की एक नई आधारशि‍ला रखना है।