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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=कबीर}}{{KKPageNavigation|आगे=कबीर दोहावली / पृष्ठ २ |सारणी=दोहावली / कबीर }}{{KKCatDoha}}{{KKVID|v=OAD4g1wrnF4}}<poem>दुख में सुमरिन सब करे, सुख मे में करे न कोय । <BR/>जो सुख मे में सुमरिन करे, दुख कहे काहे को होय ॥ 1 ॥ <BR/><BR/>
तिनका कबहुँ ना न निंदिये, जो पाँव तले पाँयन तर होय । <BR/>कबहुँ उड़ आँखो पड़ेआँखिन परे, पीर घानेरी घनेरी होय ॥ 2 ॥ <BR/><BR/>
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर । <BR/>कर का मन का डार दें, मन का मनका फेर ॥ 3 ॥ <BR/><BR/>
गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागूं पाँय । <BR/>बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय ॥ 4 ॥ <BR/><BR/>
बलिहारी गुरु आपनो, घड़ी-घड़ी सौ सौ बार । <BR/>मानुष से देवत किया करत न लागी बार ॥ 5 ॥ <BR/><BR/>
सुख मे में सुमिरन ना किया, दु:ख में किया याद । <BR/>कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद ॥ 7 ॥ <BR/><BR/>
साईं इतना दीजिये, जा मे में कुटुम समाय । <BR/>मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ॥ 8 ॥ <BR/><BR/>
लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट । <BR/>पाछे फिरे पछताओगे, प्राण जाहिं जब छूट ॥ 9 ॥ <BR/><BR/>
जाति न पूछो साधु की, पूछि लीजिए ज्ञान । <BR/>मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान ॥ 10 ॥ <BR/><BR/>
जहाँ दया तहाँ धर्म है, जहाँ लोभ तहाँ पाप । <BR/>जहाँ क्रोध तहाँ पाप है, जहाँ क्षमा तहाँ आप ॥ 11 ॥ <BR/><BR/>
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय । <BR/>माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ॥ 12 ॥ <BR/><BR/>
कबीरा ते नर अन्ध है, गुरु को कहते और । <BR/>हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रुठै नहीं ठौर ॥ 13 ॥ <BR/><BR/>
पाँच पहर धन्धे गया, तीन पहर गया सोय । <BR/>एक पहर हरि नाम बिन, मुक्ति कैसे होय ॥ 14 ॥ <BR/><BR/>
कबीरा सोया क्या करे, उठि न भजे भगवान । <BR/>जम जब घर ले जायेंगे, पड़ी रहेगी म्यान ॥ 15 ॥ <BR/><BR/>
शीलवन्त सबसे बड़ा, सब रतनन की खान । <BR/>तीन लोक की सम्पदा, रही शील में आन ॥ 16 ॥ <BR/><BR/>
माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर । <BR/>आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर ॥ 17 ॥ <BR/><BR/>
माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय । <BR/>एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूंगी तोय ॥ 18 ॥ <BR/><BR/>
रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय । <BR/>हीना जन्म अनमोल था, कोड़ी बदले जाय ॥ 19 ॥ <BR/><BR/>
नींद निशानी मौत की, उठ कबीरा जाग । <BR/>और रसायन छांड़ि के, नाम रसायन लाग ॥ 20 ॥ <BR/><BR/>
जो तोकु कांटा बुवे, ताहि बोय तू फूल । <BR/>तोकू फूल के फूल है, बाकू है त्रिशूल ॥ 21 ॥ <BR/><BR/>
दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार । <BR/> तरुवर ज्यों पत्ती झड़े, बहुरि न लागे डार ॥ 22 ॥ <BR/><BR/> आय हैं सो जाएँगे, राजा रंक फकीर । <BR/>एक सिंहासन चढ़ि चले, एक बँधे जात जंजीर ॥ 23 ॥ <BR/><BR/>
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब । <BR/>पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगा कब ॥ 24 ॥ <BR/><BR/>
माँगन मरण समान है, मति माँगो कोई भीख । <BR/>माँगन से तो मरना भला, यह सतगुरु की सीख ॥ 25 ॥ <BR/><BR/>
जहाँ आपा तहाँ आपदां, जहाँ संशय तहाँ रोग । <BR/>कह कबीर यह क्यों मिटे, चारों धीरज रोग ॥ 26 ॥ <BR/><BR/>
माया छाया एक सी, बिरला जाने कोय । <BR/> भगता के पीछे लगे, सम्मुख भागे सोय ॥ 27 ॥ <BR/><BR/>
आया था किस काम को, तु सोया चादर तान । <BR/>सुरत सम्भाल ए गाफिल, अपना आप पहचान ॥ 28 ॥ <BR/><BR/>
क्या भरोसा देह का, बिनस जात छिन मांह । <BR/>साँस-सांस सुमिरन करो और यतन कुछ नांह ॥ 29 ॥ <BR/><BR/>
गारी ही सों ऊपजे, कलह कष्ट और मींच । <BR/>हारि चले सो साधु है, लागि चले सो नींच ॥ 30 ॥ <BR/><BR/>
दुर्बल को न सताइए, जाकि मोटी हाय । <BR/> बिना जीव की हाय से, लोहा भस्म हो जाय ॥ 31 ॥ <BR/><BR/>
दान दिए धन ना घते, नदी ने घटे नीर । <BR/>अपनी आँखों देख लो, यों क्या कहे कबीर ॥ 32 ॥ <BR/><BR/>
दस द्वारे का पिंजरा, तामे तामें पंछी का कौन । <BR/>रहे को अचरज है, गए अचम्भा कौन ॥ 33 ॥ <BR/><BR/>
ऐसी वाणी बोलेए, मन का आपा खोय । <BR/>औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होय ॥ 34 ॥ <BR/><BR/>
हीरा वहाँ न खोलिये, जहाँ कुंजड़ों की हाट । <BR/>बांधो चुप की पोटरी, लागहु अपनी बाट ॥ 35 ॥ <BR/><BR/>
कुटिल वचन सबसे बुरा, जारि कर तन हार । <BR/>साधु वचन जल रूप, बरसे अमृत धार ॥ 36 ॥ <BR/><BR/>
जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय । <BR/>यह आपा तो ड़ाल दे, दया करे सब कोय ॥ 37 ॥ <BR/><BR/>
मैं रोऊँ जब जगत को, मोको रोवे न होय । <BR/>मोको रोबे सोचना, जो शब्द बोय की होय ॥ 38 ॥ <BR/><BR/>
सोवा साधु जगाइए, करे नाम का जाप । <BR/>यह तीनों सोते भले, साकित सिंह और साँप ॥ 39 ॥ <BR/><BR/>
अवगुन कहूँ शराब का, आपा अहमक साथ । <BR/>मानुष से पशुआ करे दाय, गाँठ से खात ॥ 40 ॥ <BR/><BR/>
बाजीगर का बांदरा, ऐसा जीव मन के साथ । <BR/>नाना नाच दिखाय कर, राखे अपने साथ ॥ 41 ॥ <BR/><BR/>
अटकी भाल शरीर में तीर रहा है टूट । <BR/>चुम्बक बिना निकले नहीं कोटि पटन को फ़ूट ॥ 42 ॥ <BR/><BR/>
कबीरा जपना काठ की, क्या दिख्लावे मोय । <BR/>ह्रदय नाम न जपेगा, यह जपनी क्या होय ॥ 43 ॥ <BR/><BR/>
पतिवृता मैली, काली कुचल कुरूप । <BR/>पतिवृता के रूप पर, वारो कोटि सरूप ॥ 44 ॥ <BR/><BR/>बैध मुआ रोगी मुआ, मुआ सकल संसार । <BR/>एक कबीरा ना मुआ, जेहि के राम अधार ॥ 45 ॥ <BR/><BR/>
सुमरण से मन लाइए, जैसे पानी बिन मीन । प्राण तजे बिन बिछड़े, सन्त कबीर कह दीन ॥ 50 ॥ समझाये समझे नहीं, पर के साथ बिकाय । <BR/>
मैं खींचत हूँ आपके, तू चला जमपुर जाए ॥ 51 ॥
हंसा मोती विण्न्या, कुञ्च्न थार भराय । <BR/>जो जन मार्ग न जाने, सो तिस कहा कराय ॥ 52 ॥ <BR/><BR/> कहना सो कह दिया, अब कुछ कहा न जाय । एक रहा दूजा गया, दरिया लहर समाय ॥ 53 ॥ वस्तु है ग्राहक नहीं, वस्तु सागर अनमोल । बिना करम का मानव, फिरैं डांवाडोल ॥ 54 ॥ कली खोटा जग आंधरा, शब्द न माने कोय । चाहे कहँ सत आइना, जो जग बैरी होय ॥ 55 ॥ कामी, क्रोधी, लालची, इनसे भक्ति न होय । भक्ति करे कोइ सूरमा, जाति वरन कुल खोय ॥ 56 ॥ जागन में सोवन करे, साधन में लौ लाय । सूरत डोर लागी रहे, तार टूट नाहिं जाय ॥ 57 ॥