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रहीम दोहावली - 2

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धनि रहीम गति मीन की, जल बिछुरत जिय जाय । <BR/>
जियत कंज तजि अनत बसि, कहा भौंर को भाय ॥ 101 ॥ <BR/><BR/>

धन दारा अरु सुतन सों, लग्यों रहै नित चित्त । <BR/>
नहि रहीम कोऊ लख्यो, गाढ़े दिन को मित्त ॥ 102 ॥ <BR/><BR/>

दोनों रहिमन एक से, जौलों बोलत नाहिं । <BR/>
जान परत है काक पिक, ॠतु बसन्त के भांहि ॥ 103 ॥ <BR/><BR/>

नात नेह दूरी भली, जो रहीम जिय जानि । <BR/>
निकट निरादर होत है, ज्यों गड़ही को पानि ॥ 104 ॥ <BR/><BR/>

धूर धरत नित सीस पर, कहु रहीम केहि काज । <BR/>
जेहि रज मुनि पतनी तरी, सो ढ़ूंढ़त गजराज ॥ 105 ॥ <BR/><BR/>

नाद रीझि तन देत मृग, नर धन देत समेत । <BR/>
ते रहिमन पसु ते अधिक, रीझेहुं कछु न देत ॥ 106 ॥ <BR/><BR/>

नहिं रहीम कछु रूप गुन, नहिं मृगया अनुराग । <BR/>
देसी स्वान जो राखिए, भ्रमत भूख ही लाग ॥ 107 ॥ <BR/><BR/>

निज कर क्रिया रहीम कहि, सिधि भावी के हाथ । <BR/>
पांसे अपने हाथ में, दांव न अपने हाथ ॥ 108 ॥ <BR/><BR/>

परि रहिबो मरिबो भलो, सहिबो कठिन कलेम । <BR/>
बामन हवैं बलि को छल्लो, दियो भलो उपदेश ॥ 109 ॥ <BR/><BR/>

नैन सलोने अधर मधु, कहु रहीम घटि कौन । <BR/>
मीठो भावे लोन पर, अरु मीठे पर लौन ॥ 110 ॥ <BR/><BR/>
पन्नगबेलि पतिव्रता, रति सम सुनो सुजान । <BR/>
हिम रहीम बेली दही, सत जोजन दहियान ॥ 111 ॥ <BR/><BR/>

पसिर पत्र झंपहि पिटहिं, सकुचि देत ससि सीत । <BR/>
कहु रहीम कुल कमल के, को बेरी को मीत ॥ 112 ॥ <BR/><BR/>

पात-पात को सीचिबों, बरी बरी को लौन । <BR/>
रहिमन ऐसी बुद्धि को, कहो बैरगो कौन ॥ 113 ॥ <BR/><BR/>

बड़ माया को दोष यह, जो कबहूं घटि जाय । <BR/>
तो रहीम गरिबो भलो, दुख सहि जिए बलाय ॥ 114 ॥ <BR/><BR/>

पुरुष पूजै देवरा, तिय पूजै रघूनाथ । <BR/>
कहि रहीम दोउन बने, पड़ो बैल के साथ ॥ 115 ॥ <BR/><BR/>

पावस देखि रहीम मन, कोइल साधे मौन । <BR/>
अब दादुर वक्ता भए, हम को पूछत कौन ॥ 116 ॥ <BR/><BR/>

प्रीतम छवि नैनन बसि, पर छवि कहां समाय । <BR/>
भरी सराय रहीम लखि, आपु पथिक फिरि जाय ॥ 117 ॥ <BR/><BR/>

बड़े दीन को दुख सुने, लेत दया उर आनि । <BR/>
हरि हाथी सों कब हुती, कहु रहीम पहिचानि ॥ 118 ॥ <BR/><BR/>

बड़े बड़ाई नहिं तजैं, लघु रहीम इतराइ । <BR/>
राइ करौंदा होत है, कटहर होत न राइ ॥ 119 ॥ <BR/><BR/>

बड़े पेट के भरन को, है रहीम दुख बाढ़ि । <BR/>
यातें हाथी हहरि कै, दयो दांत द्वै काढ़ि ॥ 120 ॥ <BR/><BR/>

बढ़त रहीम धनाढय धन, धनौं धनी को जाई । <BR/>
धटै बढ़ै वाको कहा, भीख मांगि जो खाई ॥ 121 ॥ <BR/><BR/>
बड़े बड़ाई ना करें, बड़ो न बोलें बोल । <BR/>
रहिमन हीरा कब कहै, लाख टका है मोल ॥ 122 ॥ <BR/><BR/>

बरू रहीम कानन बसिय, असन करिय फल तोय । <BR/>
बन्धु मध्य गति दीन हवै, बसिबो उचित न होय ॥ 123 ॥ <BR/><BR/>

बिपति भए धन ना रहै, रहै जो लाख करोर । <BR/>
नभ तारे छिपि जात हैं, ज्यों रहीम ये भोर ॥ 124 ॥ <BR/><BR/>

बांकी चितवनि चित चढ़ी, सूधी तौ कछु धीम । <BR/>
गांसी ते बढ़ि होत दुख, काढ़ि न कढ़त रहीम ॥ 125 ॥ <BR/><BR/>

विरह रूप धन तम भए, अवधि आस उधोत । <BR/>
ज्यों रहीम भादों निसा, चमकि जात खद्दोत ॥ 126 ॥ <BR/><BR/>

बसि कुसंग चाहत कुसल, यह रहीम जिय सोस । <BR/>
महिमा घटी समुन्द्र की, रावन बस्यो परोस ॥ 127 ॥ <BR/><BR/>

बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय । <BR/>
रहिमन बिगरै दूध को, मथे न माखन होय ॥ 128 ॥ <BR/><BR/>

भावी काहू न दही, दही एक भगवान । <BR/>
भावी ऐसा प्रबल है, कहि रहीम यह जानि ॥ 129 ॥ <BR/><BR/>

भीत गिरी पाखान की, अररानी वहि ठाम । <BR/>
अब रहीम धोखो यहै, को लागै केहि काम ॥ 130 ॥ <BR/><BR/>

भजौं तो काको मैं भजौं, तजौं तो काको आन । <BR/>
भजन तजन ते बिलग हैं, तेहिं रहीम जू जान ॥ 131 ॥ <BR/><BR/>

भावी या उनमान की, पांडव बनहिं रहीम । <BR/>
तदपि गौरि सुनि बांझ, बरू है संभु अजीम ॥ 132 ॥ <BR/><BR/>
भलो भयो घर ते छुटयो, हस्यो सीस परिखेत । <BR/>
काके काके नवत हम, अपत पेट के हेत ॥ 133 ॥ <BR/><BR/>

भूप गनत लघु गुनिन को, गुनी गुनत लघु भुप । <BR/>
रहिमन गिरि ते भूमि लौं, लखौ तौ एकै रुप ॥ 134 ॥ <BR/><BR/>

महि नभ सर पंजर कियो, रहिमन बल अवसेष । <BR/>
सो अर्जुन बैराट घर, रहे नारि के भेष ॥ 135 ॥ <BR/><BR/>

मनसिज माली कै उपज, कहि रहीम नहिं जाय । <BR/>
फल श्यामा के उर लगे, फूल श्याम उर जाय ॥ 136 ॥ <BR/><BR/>

मथत मथत माखन रहै, दही मही विलगाय । <BR/>
रहिमन सोई मीत है, भीत परे ठहराय ॥ 137 ॥ <BR/><BR/>

मन से कहां रहीम प्रभु, दृग सों कहा दिवान । <BR/>
देखि दृगन जो आदरैं, मन तोहि हाथ बिकान ॥ 138 ॥ <BR/><BR/>

माह मास लहि टेसुआ, मीन परे थल और । <BR/>
त्यों रहीम जग जानिए, छुटे आपने ठौर ॥ 139 ॥ <BR/><BR/>

मांगे मुकरिन को गयो, केहि न त्यागियो साथ । <BR/>
मांगत आगे सुख लहयो, ते रहीम रघुनाथ ॥ 140 ॥ <BR/><BR/>

मान सरोवर ही मिलैं, हंसनि मुक्ता भोग । <BR/>
सफरिन भरे रहीम सर, बक बालक नहिं जोग ॥ 141 ॥ <BR/><BR/>

मान सहित विष खाय के, संभु भए जगदीस । <BR/>
बिना मान अमृत पिए, राहु कटायो सीस ॥ 142 ॥ <BR/><BR/>

मांगे घटत रहीम पद, कितौ करो बड़ काम । <BR/>
तीन पैग वसुधा करी, तऊ बावने नाम ॥ 143 ॥ <BR/><BR/>
मूढ़ मंडली में सुजन, ठहरत नहीं विसेख । <BR/>
स्याम कंचन में सेत ज्यों, दूरि कीजिअत देख ॥ 144 ॥ <BR/><BR/>

यद्धपि अवनि अनेक हैं, कूपवन्त सर ताल । <BR/>
रहिमन मान सरोवरहिं, मनसा करत मराल ॥ 145 ॥ <BR/><BR/>

मुनि नारी पाषान ही, कपि पसु गुह मातंग । <BR/>
तीनों तारे रामजु तीनो मेरे अंग ॥ 146 ॥ <BR/><BR/>

मंदन के मरिहू, अवगुन गुन न सराहि । <BR/>
ज्यों रहीम बांधहू बंधै, मरवा हवै अधिकाहि ॥ 147 ॥ <BR/><BR/>

मुक्ता कर करपूर कर, चातक-जीवन जोय । <BR/>
एतो बड़ो रहीम जल, ब्याल बदन बिस होय ॥ 148 ॥ <BR/><BR/>

यह रहीम मानै नहीं, दिन से नवा जो होय । <BR/>
चीता चोर कमान के, नए ते अवगुन होय ॥ 149 ॥ <BR/><BR/>

यों रहीम सुख दु:ख सहत, बड़े लोग सह सांति । <BR/>
उदत चंद चोहि भांति सों, अथवत ताहि भांति ॥ 150 ॥ <BR/><BR/>

यह रहीम निज संग लै, जनमत जगत न कोय । <BR/>
बैर प्रीति अभ्यास जस, होत होत ही होय ॥ 151 ॥ <BR/><BR/>

ये रहीम फीके दुवौ, जानि महा संतापु । <BR/>
ज्यों तिय कुच आपन गहे, आपु बड़ाई आपु ॥ 152 ॥ <BR/><BR/>

याते जान्यो मन भयो, जरि बरि भसम बनाय । <BR/>
रहिमन जाहि लगाइए, सोइ रूखो है जाय ॥ 153 ॥ <BR/><BR/>

रन बन व्याधि विपत्ति में, रहिमन मरै न रोय । <BR/>
जो रच्छक जननी जठर, सो हरि गए कि सोय ॥ 154 ॥ <BR/><BR/>
रहिमन अपने पेट सों, बहुत कह्यो समुझाय । <BR/>
जो तू अनखाए रहे, तो सों को अनखाय ॥ 155 ॥ <BR/><BR/>

रहिमन अति न कीजिए, गहि रहिए निज कानि । <BR/>
सैंजन अति फूलै तऊ, डार पात की हानि ॥ 156 ॥ <BR/><BR/>

वहै प्रति नहिं रीति वह, नहीं पाछिलो हेत । <BR/>
घटत घटत रहिमन घटै, ज्यों कर लीन्हे रेत ॥ 157 ॥ <BR/><BR/>

रहिमन अपने गोत को, सबै चहत उत्साय । <BR/>
मृग उछरत आकास को, भूमी खनत बराह ॥ 158 ॥ <BR/><BR/>

रहिमन अब वे विरिछ कहं, जिनकी छांह गंभीर । <BR/>
बागन बिच बिच देखियत, सेहुड़ कंज करीर ॥ 159 ॥ <BR/><BR/>

रहिमन सूधी चाल तें, प्यादा होत उजीर । <BR/>
फरजी मीर न है सके, टेढ़े की तासीर ॥ 160 ॥ <BR/><BR/>

रहिमन खोटि आदि की, सो परिनाम लखाय । <BR/>
जैसे दीपक तम भरवै, कज्जल वमन कराय ॥ 161 ॥ <BR/><BR/>

रहिमन राज सराहिए, ससि सुखद जो होय । <BR/>
कहा बापुरो भानु है, तपै तरैयन खोय ॥ 162 ॥ <BR/><BR/>

रहिमन आंटा के लगे, बाजत है दिन रात । <BR/>
घिउ शक्कर जे खात हैं, तिनकी कहां बिसात ॥ 163 ॥ <BR/><BR/>

रहिमन एक दिन वे रहे, बीच न सोहत हार । <BR/>
वायु जो ऐसी बस गई, बीचन परे पहार ॥ 164 ॥ <BR/><BR/>

रहिमन रिति सराहिए, जो घत गुन सम होय । <BR/>
भीति आप पै डारि कै, सबै मियावे तोय ॥ 165 ॥ <BR/><BR/>
रीति प्रीति सबसों भली, बैर न हित मित गोत । <BR/>
रहिमन याही जनम की, बहुरि न संगति होत ॥ 166 ॥ <BR/><BR/>

रहिमन नीचन संग बसि, लगत कलंक न काहि । <BR/>
दूध कलारी कर गहे, मद समुझैं सब ताहि ॥ 167 ॥ <BR/><BR/>

समय लाभ समय लाभ नहिं, समय चूक सम चूक । <BR/>
चतुरन चित रहिमन लगी, समय चूक की हूक ॥ 168 ॥ <BR/><BR/>

रहिमन नीच प्रसंग ते, नित प्रति लाभ विकार । <BR/>
नीर चोरावै संपुटी, भारू सहे धारिआर ॥ 169 ॥ <BR/><BR/>

रहिमन दानि दरिद्रतर, तऊ जांचिबे योग । <BR/>
ज्यों सरितन सूखा करे, कुआं खनावत लोग ॥ 170 ॥ <BR/><BR/>

रहिमन तीर की चोट ते, चोट परे बचि जाय । <BR/>
नैन बान की चोट तैं, चोट परे मरि जाय ॥ 171 ॥ <BR/><BR/>

रुप बिलोकि रहीम तहं, जहं तहं मन लगि जाय । <BR/>
याके ताकहिं आप बहु, लेत छुड़ाय, छुड़ाय ॥ 172 ॥ <BR/><BR/>

सदा नगारा कूच का, बाजत आठो जाम । <BR/>
रहिमन या जग आइकै, का करि रहा मुकाम ॥ 173 ॥ <BR/><BR/>

समय पाय फल होत है, समय पाय झरि जात । <BR/>
सदा रहै नहीं एक सी, का रहीम पछितात ॥ 174 ॥ <BR/><BR/>

रहिमन आलस भजन में, विषय सुखहिं लपटाय । <BR/>
घास चरै पसु स्वाद तै, गुरु गुलिलाएं खाय ॥ 175 ॥ <BR/><BR/>

रहिमन वित्त अधर्म को, जरत न लागै बार । <BR/>
चोरी करि होरी रची, भई तनिक में छार ॥ 176 ॥ <BR/><BR/>
रहिमन जो तुम कहत थे, संगति ही गुन होय । <BR/>
बीच उखारी रसभरा, रह काहै ना होय ॥ 177 ॥ <BR/><BR/>

रहिमन रिस को छांड़ि कै, करो गरीबी भेस । <BR/>
मीठो बोलो, नै चलो, सबै तुम्हारो देस ॥ 178 ॥ <BR/><BR/>

रहिमन मारगा प्रेम को, मर्मत हीत मझाव । <BR/>
जो डिरिहै ते फिर कहूं, नहिं धरने को पांव ॥ 179 ॥ <BR/><BR/>

रहिमन सुधि सब ते भली, लगै जो बारंबार । <BR/>
बिछुरे मानुष फिर मिलें, यहै जान अवतार ॥ 180 ॥ <BR/><BR/>

रहिमन चाक कुम्हार को, मांगे दिया न देई । <BR/>
छेद में ड़डा डारि कै, चहै नांद लै लेई ॥ 181 ॥ <BR/><BR/>

रहिमन विपदा हू भली, जो थोरे दिन होय । <BR/>
हित अनहित मा जगत में, जानि परत सब कोय ॥ 182 ॥ <BR/><BR/>

रहिमन रजनी ही भली, पिय सों होय मिलाप । <BR/>
खरो दिवस केहि काम जो, रहिबो आपुहि आप ॥ 183 ॥ <BR/><BR/>

रहिमन बात अगम्य की, कहन सुनन की नाहिं । <BR/>
जो जानत सो कहत नहिं, कहत ते जानत नाहिं ॥ 184 ॥ <BR/><BR/>

रहिमन अंसुवा नैन ढरि, जिय दुख प्रगट करेइ । <BR/>
जाहि निकारो गेह तें, कस न भेद कहि देइ ॥ 185 ॥ <BR/><BR/>

रहिमन मंदत बड़ेन की, लघुता होत अनूप । <BR/>
बलि मरद मोचन को गए, धरि बावन को रूप ॥ 186 ॥ <BR/><BR/>

रहिमन याचकता गहे, बड़े छोट है जात । <BR/>
नारायण हू को भयो, बावन अंगूर गात ॥ 187 ॥ <BR/><BR/>
समय दसा कुल देखिकै, सबै करत सनमान । <BR/>
रहिमन दीन अनाथ को, तुम बिन को भगवान ॥ 188 ॥ <BR/><BR/>

सरवर के खग एक से, बाढ़त प्रीति न धीम । <BR/>
पै मराल को मानसर, एकै ठौर रहीम ॥ 189 ॥ <BR/><BR/>

रहिमन ठठरी धूर की, रही पवन ते पूरि । <BR/>
गांठ युक्ति की खुलि गई, अन्त धूरि की धूरि ॥ 190 ॥ <BR/><BR/>

राम राम जान्यो नहीं, भइ पूजा में हानि । <BR/>
कहि रहीम क्यों मानिहैं, जम के किंकरकानि ॥ 191 ॥ <BR/><BR/>

रहिमन सो न कछू गनै, जासों लागो नैन । <BR/>
सहि के सोच बेसाहियो, गयो हाथ को चैन ॥ 192 ॥ <BR/><BR/>

रूप कथा पद चारू पट, कंचन दोहा लाल । <BR/>
ज्यों ज्यों निरखत सूक्ष्म गति, मोल रहीम बिसाल ॥ 193 ॥ <BR/><BR/>

लिखी रहीम लिलार में, भई आन की आन । <BR/>
पद कर काटि बनारसी, पहुंचे मगहर थान ॥ 194 ॥ <BR/><BR/>

रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय । <BR/>
टूटे से फिर न मिले, मिले तो गांठ पड़ जाय ॥ 195 ॥ <BR/><BR/>

रहिमन धरिया रहंट की, त्यों ओछे की डीठ । <BR/>
रीतेहि सन्मुख होत है, भरी दुखावै पीठ ॥ 196 ॥ <BR/><BR/>

रहिमन लाख भली करो, अगुने अपुन न जाय । <BR/>
राग सुनत पय पुअत हूं, सांप सहज धरि खाय ॥ 197 ॥ <BR/><BR/>

रहिमन तुम हमसों करी, करी करी जो तीर । <BR/>
बाढ़े दिन के मीत हो, गाढ़े दिन रघुबीर ॥ 198 ॥ <BR/><BR/>
रहिमन बिगरी आदि की, बनै न खरचे दाम । <BR/>
हरि बाढ़े आकास लौं, तऊ बावने नाम ॥ 199 ॥ <BR/><BR/>

रहिमन पर उपकार के, करत न यारी बीच । <BR/>
मांस दियो शिवि भूप ने, दीन्हो हाड़ दधीच ॥ 200 ॥ <BR/><BR/>
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