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{{KKRachna
|रचनाकार=शकील बँदायूनीबदायूँनी
}}
</poem>क्या क़शिश1 क़शिश<ref>आकर्षण</ref> हुस्ने-रोज़गार में2 में<ref>ज़माने के सौन्दर्य में</ref> है
ग़म भी डूबा हुआ बहार में है
मेरा दिल मेरे इख़्तियार में है
दिल की धड़कन ये दे रही है सदा3सदा<ref> आवाज़</ref>
जा कोई तेरे इन्तिज़ार में है
हो परीशाँ हिजाबे-ग़म से4 से<ref>ग़म के पर्दे से</ref> न दिलकारवां पर्दा-ए-ग़ुबार में5 में<ref> धूल के पर्दे में</ref> है
नाला-ए-नीम शब को6 को<ref>आधी रात</ref> को ग़ौर से सुन
एक नग़्मा भी इस पुकार में है
खोल दे बाबे-मयकदा7 मयकदा<ref>मधुशाला का दरवाज़ा</ref> साक़ी
इक फ़रिश्ता भी इन्तिज़ार में है
महवे-गर्दिश8 गर्दि<ref>चक्कर काटने में लीन</ref> है कायनात9 कायनात<ref>ब्रह्माण्ड</ref> शकीलमेरी तक़दीर किस शुमार10 शुमार<ref>गणना</ref> में है
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