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 एसा ऐसा लगता है कि जैसे कुछ न कुछ होने का है
क्या बचा है पास अपने जिसका डर खोने का है
क्यूं तस्लली तसल्ली दे रहे हैं झूठी अपने आपको
जागने के वक्त को हम कह रहे सोने का है
जब बुरा कहने लगे खुद अपनी यूँ औलाद भी
भोझ बोझ इससे और बढ़ कर तू बता ढोने का है
तू समझाता समझता होगा"आज़र" वो पिंघल पिघल ही जाएगामुझको तो लगता नहीं की कि फायदा रोने का है
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