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Kavita Kosh से
ये ठीक है कि ज़िन्दगी को कल कि धुन में जी मगर
कभी-कभी उदास हो कभी-कभी अतीत बन
तपन बहुत है प्यास में दहक रही है धूप-सीबुझा दे दिल कि आग को मौहबब्तों मुहबब्तों कि शीत बन
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