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बुझाता हूं लेकिन ये भड़की हुई है
लगा तुझको धोखा हकीकत यही है लबों पे मेरे साफ़गोई जमी है बुराई-बुराई नज़र आ रही हैभलाई पे लेकिन ये दुनिया टिकी है गरजने से बादल बरसता कभी हैघटा बन के आता बरसता वही है अभी बालपन की शरारत वही हैजवानी भी बचपन को कब भूलती है पुरानी रिवायत को हमने है तोड़ाकहानी जो लिक्खी नए दौर की है उजाला सुबह का ये सूरज है लायासुहाना है मौसम हवा भी चली है ये खुशबू का झोंका ये उपवन की रौनककली फ़ूल बन कर चमन में खिली है गिरा के उठा दीं हैं उसने जो पलकेंलगी हर नज़र की उधर टकटकी है सुनी उसकी बातें हैं देखा नहीं परहवा बे वजह कोई कैसे चली है मुझे क्या हुआ है तुझे क्या बताऊंअभी अपनी खुद को खबर कब मिली है अभी तुम छुपा लो ये राज़े मुहब्बतमगर हर नज़र देखो तुम पर टिकी है कहां से मैं लाऊं वो जम-जम का पानीहमारे ही हाथों क्या गंगा बची है ज़रा सा छुआ था सुलगती सी निकलीवो शबनम से शोला अभी जो बनी है अदाएं हैं तेरी अलग यह निरालीतू उतरी हुई क्या अजल से परी है बुरा तब न मानू जो एसा न होताहकुमत में तेरे मेरी कब चली है किसी को कहेंगे बुरा सा लगेगानज़र को नज़र खुद हमारी लगी है मदारी के डमरू ने जमघट लगायाक्यूं आगे निकलने की सबको पड़ी है जरा कौंधी बिजली हुआ यूं उजालालगा हमको सहरा में अपना कोई है करें क्या भरोसा निगाहों का उनकीहै सूरत तो भोली बगल में छुरी है भले काम कोई न बनता हो मेरामुकद्दर से अपने शिकायत न की है कभी पूरी होती न हसरत जो मन कीये सबसे बड़ी आदमी में कमी है बढ़ा के कदम पीछे खीचों न जानमतुम्हारे सहारे मेरी जिंदगी है मैं रस्मों रिवाज़ों को कैसे निभाऊंमेरी जिंदगी सादगी में ढली है पता जब से हमको चला है हवस कातभी से जहाँ में मची खलबली है मुहब्बत की बातें किताबों में पढ़ लोहकीकत से इनका न मतलब कोई है अचानक हुआ हादसा इस नगर मेंउठा कर नज़र देखो भगदड़ मची है जरुरी नहीं बात उसकी हो सच्चीबताओ तो मुझको ये किसने कही है मुझे घूरते हो क्या देखा न पहलेन बदला है कुछ भी है सूरत वही है भरोसा नहीं आज हमको किसी परभरोसे पे लेकिन ये दुनिया टिकी है वही बात फ़िर से क्यूं कह दी है तुमनेजो खुद बात तुमको न अच्छी लगी है ये पत्तझर का मौसम किसे रास आएकली खिलती सावन में लगती भली है चलो साथ मेरे जहां तक चलूं मैंसफ़र में अभी तक अकेले कटी है सफ़र तो सफ़र है सफ़र ही रहेगाकिसी को मुकम्मल क्या मंजिल मिली है ये निकली नदी है पहाड़ी से लेकिनसमुंदर से जा कर के सीधी मिली है मज़ा ले ले प्यारे नमक तू छिड़क लेक्यामत भी आगे ही तेरे खड़ी है किसे याद रक्खूं किसे भूल जाऊंमुसीबत में किस-किस ने की दिल्लगी है तुझे रास आई है महफ़िल की रौनक अकेले में मेरी कटी जिंदगी है नहीं नींद आती है सोना मैं चाहूंकरूं तो करूं क्या ये उलझन बड़ी है नहीं काम आसां ये देखा है मैनेमना लूं मैं खुद को ये कोशिश भी की है मिला हमको ख़त का ये उत्तर तो देखोन तहज़ीब उसमें ज़रा सी कोई है तुझे क्या पता शेइर कहते हैं कैसेग़ज़ल तुझको लिखने कि आफ़त पड़ी है अलिफ़ ,बे ,ते, टे, से, से होता है हव्वान मतलब पता है कहावत पढ़ी है अगर पूछना है सलीका भी सीखोअदब मोल देखो न बिकता कभी है नसीहत तो देना है आसान प्यारेअमल खुद न करना ये आदत बुरी हैं बुरी नज़रों वाले मुहं काला हो तेराकई बार हमने इबारत पढ़ी है है ज़र्रानवाज़ी बड़ी मेहरबानीहमेशा इनायत तुम्हारी रही है अभी शाम होने में घंटो पड़े हैंन जाने की तुझको क्यूं जल्दी पड़ी है मुहब्बत को शर्तो से बेखोफ़ जकड़ाइबादत मुहब्बत कि तुमने न की है मुबारक हो तुझको ज़माने की खुशियांमुझे अपने ग़म से न शिकवा कोई है खुशी मन की होती है करते दिखावादिखावे ने करदी है सब गड़बड़ी है बड़ी उलझने हैं यूं जीवन में यारोंतसल्ली खुदा ने किसी को न दी है हवा का ये झोंका किधर से है आयाये पूरब से ठंडी हवा कब चली है छुपा ले छुपा ले ये चेहरा छुपा लेतू जीवीत है मुझको तसल्ली यही है चले आओ बेखौफ़ ये घर है तुम्हारातकल्लुफ़ न कोई यहां पे कोई है अमीरी की बातें न हमसे करो तुमगारीबों के बारे में सोचा कभी है जबां को सम्भालों करो बात धीरेपड़ोसी कि देखो वो खिड़की खुली है बिका माल सस्ता तो सब ने खरीदान सोचा किसी ने क्यूं बोली लगी है बता दो बता दो हमें तो बता दोक्यूं पलकों पे आई ये कैसी नमी है उठा है धुआं तो लगी आग होगीनगर में दुहाई-दुहाई मची है ये मुम्किन नहीं है तुझे भूल जाऊंतेरी याद दिल में हमेशा रही है जुदा क्यूं समझते हो अपने को हमसेतुम्हारी खुशी में हमारी खुशी है तुफ़ां जिंदगी में तो आते ही रहतेनहीं हौसलों की इधर भी कमी है घटा बन के आई है बरसेगा बादलमेरी छ्त पे बरसे ज़रूरी कोई है तुम्हारी दुआओं का आलम है यारोतभी मौत हमसे यूं डरके रही है चलूं इस नगर से मैं बांधू ये बिस्तरसफ़र जिंदगी में अभी ओर भी है न कूचा ही मेरा न है कोई मंजिलमैं जाऊं किधर को ये उलझन बड़ी है सवाली खड़ा है तेरे दर के आगेमगर इच्छा कोई न तुझसे रही है पुरानी है आदत है उसका मुकरनाक्या मरने से पहले न जाती कभी है न तर्के रिफ़ाक्त की बातें करो तुममुहब्बत में आगे कशिश कब बची है ज़मी पे मचा है घमासान कितनायूं अंबर कि तूने कभी सुध क्या ली है अगर इश्क करना है खुल के करो तुमज़माने की परवाह से मुश्किल बढ़ी है ये जुल्मो-सितम कब तक ढाते रहोगेशराफ़त कि तुमने तो हद तोड़ दी है नदी के किनारे क्या कश्ती लगेगीहवांओ का रुख वैसे विपरीत ही है मिलें सबको खुशियां ओर खुशहाल जीवनतम्मना हमारी सदा ये रही है वो हमको बुलाने में शरमा रहे हैं नज़र उनकी लेकिन इधर ही टिकी है बहुत देर तक यह सवेरा रहेगायही बात लेकर के चर्चा छिड़ी है चिरागों को रौशन सभी हम करेंगेमगर शकां स्थिर सी फ़िर भी बनी है वो जाए न जाए ये उसकी है मर्जीकिसी को किसी की क्या परवाह पड़ी है कदरदान कितने हैं इतना बता दोयूं मरने से पहले कदर किसने की है पुकारा जो दादी ने उत्तर मिला यहअरी चुप भी हो जा क्यूँ पागल हुई है किसी ने हवा को छुआ है भला क्याछुए कोइ कैसे क्या देखी गई है खफ़ा कोई होता है अपनी बला सेहमारी तरफ़ से न कोई कमी है वही दर्दे गम है न पीछा ही छोडाखुशी से भी गम को न राहत मिली है चलूं नीदं आई है सोना है मुझकोकई बार आई और आकर उड़ी है उभारो न इस बात को और आगेबड़ी मुश्किलों से आगे दबी है किया वार आंखे जो बंद करके मैनेपलट वार उल्टा य़ूं मुझपे पड़ी है करो मौज़ मस्ती क्या रोना क्या धोनायूं खुशियों कि आगे ही वैसे कमी है किसी के गुजरने से पल भर का मातमरुके जिंदगी कब ये चलते चली है गया जो मुसाफ़िर न लौटा कभी वोमगर आस में ये नज़र खोजती है दुआ में असर है ये सब मानते हैंइबादत कभी तुमने दिल से क्या की है तू इल्ज़ाम मुझपे जो मर्ज़ी लगा देधुली दूध की खुद तू कितनी धुली है सही को सही या सही को कहें क्याक्या गुम्मबद से लौटी सदा सी सुनी है चलो अब चलें धूप सिर पे बहुत सीकदम दर कदम ये चढ़े जा रही है सबर का ये प्याला मेरा भर चुका अबमुझे बात तेरी हमेशा खली है जहां से चला था वहीं लौट आयाकहानी भी खुद की वहीं से लिखी है रही जिंदगी यूं मुसाफ़िर हो जैसेबहुत सिर को पटका न मंजिल मिली है वहीं पानी भरना यूं खड्डो का बननासडक को बनाने में कुछ तो कमी है करामात उसकी निजामत भी उसकीखुदा की ये हम पर इनायत रही है मुझे रास आई है देखो फ़कीरीन राजा ही बढ़ कर यूं मुझसा कोई है मुकर्रर-मुकर्रर सभी कह रहे हैंमगर ये ग़ज़ल तो चुराई हुई है बहर से न खारिज़ बताना ग़ज़ल कोफ़ऊलुन , फ़ऊलुन , फ़ऊलुन सही है निक्क्मा क्यूं "आज़र" मुझे कह रहे हो १०३निक्कमें ने पढ़ लो ग़ज़ल यह लिखी है धन्यवादपुरुषोत्तम अब्बी "आज़र" {{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"}}{{KKCatGhazal}}<poem> लगी आग सीने में मेरे लगी हैबुझाता हूं लेकिन ये भड़की हुई है लगा तुझको धोखा हकीकत यही है
लबों पे मेरे साफ़गोई जमी है
निकम्मा क्यूं "आज़र" मुझे कह रहे हो
निकम्में ने पढ़ लो ग़ज़ल यह लिखी है
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