भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गुजरिया / भारतेन्दु मिश्र

3 bytes added, 11:53, 20 सितम्बर 2011
हँसते हो-गाते हो
सपनों मे में आते हो
धान जब लगाते हो
तुम बहुत सुहाते हो
आँखों मे चाहत का रंग भर दिया।
</poem>