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{{KKRachna
|रचनाकार=ओम निश्चल
|संग्रह=शब्‍द सक्रिय हैं
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<Poem>
भर गया
तेजाब-सा कोई
खुशनुमा माहौल में आकर।

नींद में
हर वक्त चुभता है
ऑंधियों का शोर--सन्नाटा
कटघरों में ज्यों- पड़े सोए
कैदियों की पीठ पर चॉंटा
तैरता
दु:स्वप्न-सा हर दृश्य
पुतलियों के ताल में अक्सर।

सड़क पर
मुस्तैद संगीनें---
बंद अपने ही घरों में हम
आदमी की शक्ल में क़ातिल
कौन पहचाने किसी का ग़म
हर गली
हर मोड़ पर बैठी
मौत अपनी बॉंह फैला कर।

बर्फ-सा
जमता हुआ हर शख्स
चुप्पियों में कैद हैं सॉंसें
समय की नंगी सलीबों पर
गले में अँटकी हुई फॉंसें
लिख रहे हैं
लोग कविताऍं
नींद की फिर गोलियॉं खाकर।
<Poem>
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