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दूध धुले हैं पॉंव पाँव तुम्हारे
अंग-अंग दिखती उबटन है
मेरी जन्मुकुंडली जन्मकुंडली जिसमें
लिखी हुई हर पल भटकन है
तुम रतनारी,हम कजरारे,
कमलनाल-सी देह तुम्हारी
देवदारु-सा तन मेरा है।है ।
साँझ तुम्हें प्यारी लगती है
चंचल मन कैसे बहलाऊँ
हँसी तुम्हारे होठ लिखी है
दर्द भरा यौवन मेरा है।है ।
सुबह जगाता सूरज तुमको
मुझसे दूर खड़ी होती है
मेरी अपनी ही परछाईं
तुमसे झूठ मुझे क्या कहना
सीमाओं का साथ तुम्हारा
सैलानी जीवन मेरा है।है ।
<Poem>