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Kavita Kosh से
बँगले में रहना जी
मोटर में घूमना
मेरी पगडंडी मत भूलना।भूलना ।
भूल गयी होंगी वे
भेज रही सौगातें
हँसी -खुशी रहना जीफूलों -सा झूमनापर मेरी याद नहीं भूलना।भूलना ।मेरी पगडंडी मत भूलना।।भूलना ।।
माना, मैं भोली हूँ
अपढ़ हूँ , गँवारन हूँ
पर दिल की सच्ची हूँ
प्रेम की पुजारन हूँ
अलसाई ऑंखों आँखों में आ रे निदियॉं निदिया आ रे,
पलकों में पाल रही हूँ
मैं सपने क्वाँरे
चाहे जो करना जी
एक अरज सुनना जी
ये क्वॉंरे क्वाँरे सपने मत तोड़ना।तोड़ना ।मेरी पगडंडी मत भूलना।।भूलना ।।
<Poem>